मान्यताओं के अनुसार देवगणों में प्रथम पूज्य श्री गणेश को संकट हरने वाला माना गया है। इसलिए जो भी दुख सुख में विघ्नहर्ता गणेशजी के मंत्रों जाप करता है और पूजा करता है उसे सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। गणपति जी का अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करते हुए संपूर्ण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। जिसमें कुछ सामग्री जैसे की सुगंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि शामिल हैं इन्हे पूजन के समय अर्पण करने से गणेश भगवान प्रसन्न होते है इनके साथ ही दुर्वा भी चढ़ा सकते हैं। लाल व सिंदूरी रंग गणपति जी को बहुत प्रिय है लाल रंग के पुष्प से पूजन करें। भगवान गणेश के नाम से ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र को का जाप करते हुए विधिवत पूजन करें। भगवान श्री गणेश जी के अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इससे घर और जीवन के अमंगल दूर होते हैं। गणेश अथर्वशीर्ष का प्रतिदिन पूर्ण शुद्धता से पाठ करने से अन्तर्मन की शुद्धि होती है। गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ से मनुष्य में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। मानसिक अशान्ति से पीड़ित जातकों को भी इस दिव्य पाठ के प्रयोग से अत्यधिक लाभ मिलता है। इस पाठ के प्रयोग से जातक के मुख पर आभा का उदय होता है। गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ नकारात्मकता का नाश कर सकारात्मकता का संचार करता है। यदि आप आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो आपको भी यह दिव्य पाठ करना चाहिये। जिन बालकों का पढ़ाई में मन नहीं लगता उन्हें भी श्री गणपति अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। According to the beliefs, the first revered among the gods, Shri Ganesha is considered to be the destroyer of trouble. Therefore, whoever chants and worships the mantras of Ganesha, the obstacle in happiness, gets all the accomplishments. While reciting the Atharvashirsh stotra of Ganapati ji, the following is recommended to be used: fragrance, akshat, flowers, incense, lamp and naivedya prasad etc. Red and vermilion colors are very dear to Ganapati ji, worship with red flowers. Do worship duly in the name of Lord Ganesha by chanting the mantra Om Gam Ganapataye Namah. Atharvashirsh stotra of Lord Shri Ganesh ji when recited, removes the evils of home and life. Reciting Ganesh Atharvashirsha with complete purity daily leads to purification of the inner soul. The recitation of Ganapati Atharvashirsha increases the decision making ability in a human being. The people suffering from mental disturbance also get immense benefit from the use of this divine text. The recitation of Ganesh Atharvashirsha destroys negativity and communicates positivity. If you are facing financial problems then you should also perform this divine recitation.Those children who do not feel like studying also get immense benefits by regularly reciting Shri Ganapati Atharvashirsha.
S1 E9 · Tue, August 30, 2022
शान्तिमन्त्र ॐ भद्रङ् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः व्यशेम देवहितं यदायुः ।। अर्थात : चारो दिशा में जिसकी कीर्ति व्याप्त हैं वह इंद्र देवता जो कि देवों के देव हैं उनके जैसे जिनकी ख्याति हैं जो बुद्धि का अपार सागर हैं जिनमे बृहस्पति के सामान शक्तियाँ हैं जिनके मार्गदर्शन से कर्म को दिशा मिलती हैं जिससे समस्त मानव जाति का भला होता हैं | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E8 · Tue, August 30, 2022
श्लोक 14 अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा, सूर्यवर्चस्वी भवति । सूर्यग्रहे महानद्याम् प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा, सिद्धमन्त्रो भवति । महाविघ्नात् प्रमुच्यते । महादोषात् प्रमुच्यते । महापापात् प्रमुच्यते । स सर्वविद् भवति, स सर्वविद् भवति । य एवम् वेद ।। अर्थात :- जो आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता हैं वे सूर्य के सामान तेजस्वी होते हैं | सूर्य ग्रहण के समय नदी तट पर अथवा अपने इष्ट के समीप इस उपनिषद का पाठ करे तो सिद्धी प्राप्त होती हैं | जिससे जीवन की रूकावटे दूर होती हैं पाप कटते हैं वह विद्वान हो जाता हैं यह ऐसे ब्रह्म विद्या हैं | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E7 · Tue, August 30, 2022
श्लोक 12 अनेन गणपतिमभिषिञ्चति । स वाग्मी भवति । चतुथ्र्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति । इत्यथर्वणवाक्यम् । ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् । न बिभेति कदाचनेति ।। अर्थात :- जो इस मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेश जी का अभिषेक करता हैं उसकी वाणी उसकी दास हो जाती हैं | जो चतुर्थी के दिन उपवास कर जप करता हैं विद्वान बनता हैं | जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय मुक्त होता हैं | श्लोक 13 यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति । स वैश्रवणोपमो भवति । यो लाजैर्यजति, स यशोवान् भवति । स मेधावान् भवति । यो मोदकसहस्रेण यजति । स वाञ्छितफलमवाप्नोति । यः साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते, स सर्वं लभते ।। अर्थात :- जो दुर्वकुरो द्वारा पूजन करता हैं वह कुबेर के समान बनता हैं जो लाजा के द्वारा पूजन करता हैं वह यशस्वी बनता हैं मेधावी बनता हैं जो मोदको के साथ पूजन करता हैं वह मन: अनुसार फल प्राप्त करता हैं | जो घृतात्क समिधा के द्वारा हवन करता हैं वह सब कुछ प्राप्त करता हैं | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E6 · Tue, August 30, 2022
श्लोक 11 एतदथर्वशीर्षं योऽधीते । स ब्रह्मभूयाय कल्पते । स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते । स सर्वतः सुखमेधते । स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते । सायमधीयानो दिवसकृतम् पापन् नाशयति । प्रातरधीयानो रात्रिकृतम् पापन् नाशयति । सायम् प्रातः प्रयुञ्जानोऽअपापो भवति । सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति । धर्मार्थकाममोक्षञ् च विन्दति । इदम् अथर्वशीर्षम् अशिष्याय न देयम् । यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति । सहस्रावर्तनात् । यं यङ् काममधीते तन् तमनेन साधयेत् ।। अर्थात :- इस अथर्वशीष का पाठ करता हैं वह विघ्नों से दूर होता हैं | वह सदैव ही सुखी हो जाता हैं वह पंच महा पाप से दूर हो जाता हैं | सन्ध्या में पाठ करने से दिन के दोष दूर होते हैं | प्रातः पाठ करने से रात्रि के दोष दूर होते हैं |हमेशा पाठ करने वाला दोष रहित हो जाता हैं और साथ ही धर्म, अर्थ, काम एवम मोक्ष पर विजयी बनता हैं | इसका 1 हजार बार पाठ करने से उपासक सिद्धि प्राप्त कर योगि बनेगा | श्लोक 12 अनेन गणपतिमभिषिञ्चति । स वाग्मी भवति । चतुथ्र्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति । इत्यथर्वणवाक्यम् । ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् । न बिभेति कदाचनेति ।। अर्थात :- जो इस मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेश जी का अभिषेक करता हैं उसकी वाणी उसकी दास हो जाती हैं | जो चतुर्थी के दिन उपवास कर जप करता हैं विद्वान बनता हैं | जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय मुक्त होता हैं | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E5 · Tue, August 30, 2022
श्लोक 9 एकदन्तञ् चतुर्हस्तम्, पाशमङ्कुशधारिणम् । रदञ् च वरदम् हस्तैर्बिभ्राणम्, मूषकध्वजम् । रक्तं लम्बोदरं, शूर्पकर्णकम् रक्तवाससम् । रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गम्, रक्तपुष्पैःसुपूजितम् । भक्तानुकम्पिनन् देवञ्, जगत्कारणमच्युतम् । आविर्भूतञ् च सृष्ट्यादौ, प्रकृतेः पुरुषात्परम् । एवन् ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः || अर्थात :- भगवान गणेश एकदन्त चार भुजाओं वाले हैं जिसमे वह पाश,अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं | उनके ध्वज पर मूषक हैं | यह लाल वस्त्र धारी हैं | चन्दन का लेप लगा हैं | लाल पुष्प धारण करते हैं | सभी की मनोकामना पूरी करने वाले जगत में सभी जगह व्याप्त हैं | श्रृष्टि के रचियता हैं | जो इनका ध्यान सच्चे ह्रदय से करे वो महा योगि हैं | श्लोक 10 नमो व्रातपतये, नमो गणपतये, नमः प्रमथपतये, नमस्ते अस्तु लम्बोदराय एकदन्ताय, विघ्ननाशिने शिवसुताय, वरदमूर्तये नमः || अर्थात : – व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम, एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E4 · Mon, August 29, 2022
श्लोक 7 गणादिम् पूर्वमुच्चार्य वर्णादिन् तदनन्तरम् । अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् । तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् । गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यमरूपम् । अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् । बिन्दुरुत्तररूपम् । नादः सन्धानम् । संहिता सन्धिः । सैषा गणेशविद्या । गणक ऋषिः । निचृद्गायत्री छन्दः । गणपतिर्देवता । ॐ गँ गणपतये नमः ।। अर्थात :- “गण” का उच्चारण करके बाद के आदिवर्ण अकार का उच्चारण करें | ॐ कार का उच्चारण करे यह पुरे मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: का भक्ति से उच्चारण करें | श्लोक 8 एकदन्ताय विद्महे । वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् अर्थात :- एकदंत, वक्रतुंड का हम ध्यान करते हैं | हमें इस सद मार्ग पर चलने की भगवन प्रेरणा दे Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E3 · Mon, August 29, 2022
श्लोक 5 सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तो जायते । सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तस्तिष्ठति । सर्वञ् जगदिदन् त्वयि लयमेष्यति । सर्वञ् जगदिदन् त्वयि प्रत्येति । त्वम् भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः । त्वञ् चत्वारि वाव्पदानि || अर्थात :- इस जगत के जन्म दाता तुम ही हो,तुमने ही सम्पूर्ण विश्व को सुरक्षा प्रदान की हैं सम्पूर्ण संसार तुम में ही निहित हैं पूरा विश्व तुम में ही दिखाई देता हैं तुम ही जल, भूमि, आकाश और वायु हो |तुम चारों दिशा में व्याप्त हो | श्लोक 6 त्वङ् गुणत्रयातीतः । (त्वम् अवस्थात्रयातीतः ।) त्वन् देहत्रयातीतः । त्वङ् कालत्रयातीतः । त्वम् मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् । त्वं शक्तित्रयात्मकः । त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् । त्वम् ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वम् रुद्रस्त्वम् इन्द्रस्त्वम् अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वञ चन्द्रमास्त्वम् ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम् अर्थात :- तुम सत्व,रज,तम तीनो गुणों से भिन्न हो | तुम तीनो कालो भूत, भविष्य और वर्तमान से भिन्न हो | तुम तीनो देहो से भिन्न हो |तुम जीवन के मूल आधार में विराजमान हो | तुम में ही तीनो शक्तियां धर्म, उत्साह, मानसिक व्याप्त हैं |योगि एवम महा गुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं | तुम ही ब्रह्म,विष्णु,रूद्र,इंद्र,अग्नि,वायु,सूर्य,चन्द्र हो | तुम मे ही गुणों सगुण, निर्गुण का समावेश हैं | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E2 · Mon, August 29, 2022
श्लोक 3 अव त्वम् माम् । अव वक्तारम् । अव श्रोतारम् । अव दातारम् । अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् । अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् । अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् । अव चोध्र्वात्तात् । अवाधरात्तात् । सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।। अर्थात :- तुम मेरे हो मेरी रक्षा करों, मेरी वाणी की रक्षा करो| मुझे सुनने वालो की रक्षा करों | मुझे देने वाले की रक्षा करों मुझे धारण करने वाले की रक्षा करों | वेदों उपनिषदों एवम उसके वाचक की रक्षा करों साथ उससे ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करों | चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, एवम दक्षिण से सम्पूर्ण रक्षा करों | श्लोक 4 त्वं वाङ्मयस्त्वञ् चिन्मयः । त्वम् आनन्दमयस्त्वम् ब्रह्ममयः । त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि । त्वम् प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि । त्वम् ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।। अर्थात:- तुम वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुम ही आनन्द ब्रह्म ज्ञानी हो, तुम ही सच्चिदानंद, अद्वितीय रूप हो , प्रत्यक्ष कर्ता हो तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान के दाता हो | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
S1 E1 · Mon, August 29, 2022
श्लोक 1 ॐ नमस्ते गणपतये । त्वमेव प्रत्यक्षन् तत्त्वमसि । त्वमेव केवलङ् कर्ताऽसि । त्वमेव केवलन् धर्ताऽसि । त्वमेव केवलम् हर्ताऽसि । त्वमेव सर्वङ् खल्विदम् ब्रह्मासि । त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।। अर्थात:- हे ! गणेशा तुम्हे प्रणाम, तुम ही सजीव प्रत्यक्ष रूप हो, तुम ही कर्म और कर्ता भी तुम ही हो, तुम ही धारण करने वाले, और तुम ही हरण करने वाले संहारी हो | तुम में ही समस्त ब्रह्माण व्याप्त हैं तुम्ही एक पवित्र साक्षी हो | श्लोक 2 ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ।। अर्थात :- ज्ञान कहता हूँ सच्चाई कहता हूँ | Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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